महाकुंभ 2001 से 1989 तक: इंसानी हड्डियों की माला से लेकर धमाकों तक की दास्तान
महाकुंभ 2025

महाकुंभ के अद्भुत किस्से: नागा साधुओं की परंपरा से लेकर विदेशी श्रद्धालुओं की आस्था तक, 8 दिलचस्प कहानियां
प्रयागराज: महाकुंभ सिर्फ आस्था और परंपरा का महोत्सव नहीं, बल्कि अद्भुत और रहस्यमयी किस्सों का संगम भी है। यहां हर बार ऐसी घटनाएं होती हैं जो मानव जीवन और धर्म के अनोखे पहलुओं को उजागर करती हैं। प्रस्तुत हैं महाकुंभ से जुड़े 8 रोचक और अविस्मरणीय किस्से:
1. इंसानी हड्डियों की माला और गंगा का आशीर्वाद
2001 के महाकुंभ में नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश) के एक परिवार ने अपने बच्चे की अस्थियां गंगा में प्रवाहित कीं। परिवार ने बताया कि कम उम्र में दिवंगत बच्चे की हड्डियों की माला बनाकर मुखिया पहनते हैं और कुंभ में गंगा से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें फिर से संतान का सुख मिले।
2. निर्वस्त्र विदेशी महिला का नागा साधुओं की तरह आचरण
2001 के कुंभ में एक विदेशी महिला ने नागा साधुओं को देखकर अपने कपड़े उतार दिए और संगम में डुबकी लगाकर रेत पर लोटने लगी। पुलिस ने उसे थाने ले जाकर शांत किया, लेकिन उसकी यह घटना मैगजीन की कवर स्टोरी बनी।
3. 1989 में कुंभ क्षेत्र में धमाके
1989 के कुंभ में बम धमाकों ने दहशत फैला दी। बांग्ला अखबार में छुपाए गए विस्फोटक मिले, हालांकि कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ। इसके बाद सुरक्षा के मद्देनजर अगले कुंभ में ब्लैक कमांडोज तैनात किए गए।
4. नागा साधु और कैमरा विवाद
1977 के कुंभ में एक पत्रकार ने नागा साधु की तस्वीर खींचने की कोशिश की। गुस्साए नागा साधु ने तलवार से कैमरा छीन लिया। बाद में, साधु के कहने पर पत्रकार ने उनकी तस्वीर ली, जो बाद में प्रसिद्ध हुई।
5. मालवीय का जवाब: कुंभ में भीड़ जुटाने का रहस्य
1942 के कुंभ में वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने मदन मोहन मालवीय से पूछा कि इतनी बड़ी भीड़ जुटाने में कितना पैसा खर्च हुआ। मालवीय ने पंचांग दिखाते हुए कहा, “सिर्फ दो पैसे। भारतीय परिवार पंचांग देखकर खुद कुंभ की तिथियों पर यहां पहुंच जाते हैं।”
6. विदेशी श्रद्धालुओं की गंगा के प्रति आस्था
2007 के अर्धकुंभ में विदेशी श्रद्धालु गंदे पानी में डुबकी लगाने से भी नहीं हिचकिचाए। बिसलेरी की बोतलें लिए ये लोग गंगा को पवित्र मानकर उसमें स्नान करने की जिद पर अड़े रहे।
7. भूले-भटके शिविर का अनोखा कार्य
2001 के कुंभ में भूले-भटके शिविर ने हजारों बिछुड़े लोगों को उनके परिवारों से मिलाया। यह परंपरा 1946 से राजाराम तिवारी द्वारा शुरू की गई थी। तिवारी को “भूले-भटके के बाबा” कहा जाता था।
8. ईसाई मिशनरी का धर्मांतरण का प्रयास
1840 के कुंभ में एक ईसाई पादरी धर्मांतरण के उद्देश्य से आया था, लेकिन कुंभ के साधु-संतों की आध्यात्मिक ताकत और श्रद्धालुओं की आस्था ने उसके प्रयास को विफल कर दिया।
निष्कर्ष:
महाकुंभ न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि यहां की घटनाएं भारतीय परंपरा, संस्कृति और विविधता का जीवंत चित्रण करती हैं। यह आयोजन हर बार लाखों श्रद्धालुओं के लिए अद्वितीय अनुभव लेकर आता है।