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वाल्मीकि टाइगर रिजर्व की धनेश पक्षी: बच्चों का ‘डायपर’ बदलने वाली अनोखी चिड़िया

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वाल्मीकि टाइगर रिजर्व की शान: दो चोंच वाली ‘धनेश’ पक्षी, जो अपने बच्चों का ‘डायपर’ बदलती है

बगहा: भारत में पक्षियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में पाई जाने वाली धनेश पक्षी (हॉर्नबिल) अपनी अनोखी आदतों और विशेषताओं के कारण चर्चा में रहती है। इसे भारत में सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और इसकी जीवनशैली बेहद खास है।

इंसानों की तरह बच्चों का रखती है ख्याल: धनेश पक्षी को अपनी स्वच्छता के लिए जाना जाता है। नेचर एनवायरनमेंट वाइल्डलाइफ सोसाइटी के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिषेक के अनुसार, यह पक्षी अपने बच्चों का मल-मूत्र साफ करने के लिए पत्तों का उपयोग करती है। घोंसले में गंदे हो चुके पत्तों को मादा पक्षी बदलकर नए पत्ते बिछा देती है। इसे इंसानों द्वारा बच्चों का डायपर बदलने के समान माना जाता है।

घोंसले और जीवनशैली की खासियत: हॉर्नबिल पेड़ों को खोदकर घोंसला बनाते हैं और जीवनभर एक ही साथी के साथ रहते हैं। मादा पक्षी तीन महीने तक घोंसले में रहती है और इस दौरान नर भोजन लाकर देता है। यदि नर लौटकर नहीं आता, तो मादा और बच्चे घोंसले में ही मर सकते हैं।

भारत में हॉर्नबिल की प्रजातियां: भारत में हॉर्नबिल की 9 प्रजातियां हैं, जिनमें से 3 प्रजातियां वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में पाई जाती हैं। इनकी चोंच के ऊपर लंबा उभार होता है, जिसे ‘हॉर्नबिल’ नाम दिया गया है। हिंदी में इसे धनेश पक्षी कहा जाता है।

पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व: पूर्वोत्तर भारत में धनेश को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। लोककथाओं में इसे समृद्धि और खुशियों का संकेत बताया गया है। नागालैंड में हर साल ‘धनेश महोत्सव’ मनाया जाता है, जहां इस पक्षी को विशेष सम्मान दिया जाता है।

संरक्षण की आवश्यकता: अंधविश्वास और शिकार के कारण धनेश पक्षी खतरे में है। इसके तेल को गठिया रोग की औषधि मानने के कारण इसका शिकार किया जाता है। इस पक्षी के संरक्षण के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है।

धनेश पक्षी न केवल प्राकृतिक विविधता को समृद्ध करता है, बल्कि भारतीय संस्कृति और पर्यावरण के प्रति जागरूकता का प्रतीक भी है। इसके संरक्षण के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है।

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