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बीसीए की टीम सेलेक्शन पर लोकपाल ने लगाई रोक, भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के आदेश

बीसीए की टीम सेलेक्शन पर लोकपाल ने लगाई रोक, भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के आदेश

पटना, 8 अक्टूबर: बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (BCA) में टीम चयन को लेकर उठे विवाद ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। बीसीए के टीम सेलेक्शन में बाहरी खिलाड़ियों के फर्जी दस्तावेजों और भ्रष्टाचार के आरोपों की गंभीर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त बीसीए लोकपाल न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एल. नागेश्वर राव ने शनिवार तक टीम चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।

यह कार्रवाई शिकायतकर्ता आदित्य वर्मा, रणजी खिलाड़ी याजस्वी ऋषभ और प्रतीक कुमार सिंह की ओर से दाखिल याचिकाओं पर की गई। लोकपाल के समक्ष बीसीए चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी, बाहरी खिलाड़ियों के फर्जी प्रमाणपत्र, और चयनकर्ताओं पर पक्षपात के गंभीर आरोप लगाए गए थे।

लोकपाल की सख्ती – जवाब तलब बीसीए से

लोकपाल ने सुनवाई के दौरान बीसीए से सभी मामलों पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव ने कहा कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक किसी भी स्तर पर टीम चयन की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी। अब इस मामले की अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को शाम 6 बजे निर्धारित की गई है, जिसमें बीसीए को सभी संबंधित दस्तावेजों के साथ उपस्थित होना होगा।

सूत्रों के अनुसार, यह रोक बीसीए की आगामी राज्यस्तरीय और आयु वर्ग की टीमों (जैसे अंडर-19, अंडर-23, सीनियर आदि) के चयन पर भी लागू होगी। इससे खिलाड़ियों में असमंजस की स्थिति बन गई है, वहीं शिकायतकर्ताओं ने लोकपाल के फैसले को “भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐतिहासिक कदम” बताया है।

क्या हैं आरोप?

शिकायतकर्ता आदित्य वर्मा, जो बीसीए में पहले भी पारदर्शिता की मांग को लेकर कई बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा चुके हैं, ने आरोप लगाया कि हाल के दिनों में बीसीए चयन समितियों ने बाहरी राज्यों के खिलाड़ियों को फर्जी स्थानीय प्रमाणपत्रों के आधार पर बिहार टीम में शामिल किया है।

उन्होंने कहा कि “कई खिलाड़ियों ने बिहार का निवास प्रमाणपत्र जाली पते पर बनवाया, जबकि वे झारखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों के स्थायी निवासी हैं। ऐसे खिलाड़ियों को प्राथमिकता देकर बीसीए ने बिहार के असली प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के साथ अन्याय किया है।”

रणजी खिलाड़ी याजस्वी ऋषभ और प्रतीक कुमार सिंह ने भी लोकपाल के समक्ष गवाही देते हुए कहा कि चयन प्रक्रिया में नियमों का खुला उल्लंघन किया गया है। कई ऐसे नाम चयन सूची में शामिल किए गए जिनका क्रिकेट रिकॉर्ड औसत से भी नीचे है, जबकि राज्य के प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को नज़रअंदाज कर दिया गया।

लोकपाल के सामने 5 मामले लंबित

जानकारी के अनुसार, बीसीए चयन प्रक्रिया से जुड़े कुल पांच मामले वर्तमान में लोकपाल न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव के समक्ष विचाराधीन हैं। इनमें से तीन मामले सीधे टीम चयन से संबंधित हैं, जबकि दो मामलों में बीसीए अधिकारियों पर फर्जीवाड़े और प्रशासनिक अनियमितताओं के आरोप लगाए गए हैं।

लोकपाल ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि क्रिकेट संघों को निष्पक्ष और पारदर्शी रहकर कार्य करना चाहिए, क्योंकि यह खिलाड़ियों के भविष्य से जुड़ा मुद्दा है। उन्होंने कहा, “खेलों में भ्रष्टाचार का कोई स्थान नहीं है। बीसीए को चाहिए कि वह खिलाड़ियों के चयन को मेरिट और योग्यता के आधार पर सुनिश्चित करे, न कि सिफारिशों और पैसों के प्रभाव से।”

आदित्य वर्मा बोले – “बिहार क्रिकेट को बचाने की लड़ाई जारी रहेगी”

शिकायतकर्ता आदित्य वर्मा ने लोकपाल के इस आदेश का स्वागत करते हुए कहा, “यह फैसला बिहार के क्रिकेट खिलाड़ियों के अधिकार की जीत है। बीसीए में व्याप्त भ्रष्टाचार और बाहरी खिलाड़ियों को लेकर जो धांधली चल रही थी, उस पर आज न्याय हुआ है। हम यह लड़ाई तब तक जारी रखेंगे जब तक बिहार का क्रिकेट पूरी तरह से पारदर्शी और निष्पक्ष नहीं हो जाता।”

उन्होंने यह भी कहा कि यदि बीसीए इस आदेश की अवहेलना करता है, तो वह मामले को दोबारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष रखेंगे।

बीसीए पर बढ़ा दबाव

लोकपाल के आदेश के बाद बीसीए प्रबंधन पर जवाब देने का दबाव बढ़ गया है। माना जा रहा है कि अब बीसीए को अपने सभी चयन रिकॉर्ड, खिलाड़ियों के दस्तावेज और चयन प्रक्रिया से जुड़ी फाइलें लोकपाल के समक्ष पेश करनी होंगी। बीसीए के भीतर भी इस फैसले के बाद हड़कंप मचा हुआ है, क्योंकि यह पहला मौका है जब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त लोकपाल ने चयन प्रक्रिया पर सीधी रोक लगाई है।

आगे क्या?

अब पूरा मामला 9 अक्टूबर की अगली सुनवाई पर टिका है। उस दिन बीसीए को अपना पक्ष रखना होगा, और यदि लोकपाल को जवाब संतोषजनक नहीं लगता है, तो जांच आगे बढ़ सकती है। ऐसी स्थिति में चयन समिति पर अनुशासनात्मक कार्रवाई और कुछ चयनकर्ताओं के निलंबन की भी संभावना जताई जा रही है।

बिहार के क्रिकेट प्रेमियों और खिलाड़ियों की निगाहें अब लोकपाल के अगले फैसले पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि क्या राज्य में क्रिकेट चयन प्रक्रिया अब ईमानदारी के रास्ते पर लौटेगी या विवादों का सिलसिला जारी रहेगा।

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