15 साल से बेघर वियाहीदह गांव के लोग प्रगति यात्रा से पहले फिर हुए विस्थापन के शिकार!
खैरा,जमुई

15 साल से बेघर वियाहीदह गांव के लोग अब जाएं तो जाएं कहां?
सरकारी उपेक्षा का शिकार परिवारों को प्रगति यात्रा से पहले फिर मिली विस्थापन की पीड़ा
जमुई (बिहार), 2025 – जमुई जिले के खैरा प्रखंड अंतर्गत आरखार पंचायत के वियाहीदह गांव का नाम भले ही सरकारी नक्शे में दर्ज हो, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। करीब 15 साल पहले कुछ बदमाशों ने इस गांव को नक्सली गतिविधियों का हवाला देकर उजाड़ दिया था, जिसके बाद से यह गांव वीरान पड़ा है। दुर्भाग्य की बात यह है कि इतने वर्षों में न तो सरकार और न ही जिला प्रशासन ने इन विस्थापित ग्रामीणों को बसाने की पहल की।
सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहे पीड़ित परिवार
अपना हक और पुनर्वास की मांग को लेकर पीड़ित ग्रामीण 15 वर्षों से सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक कोई राहत नहीं मिली। वे सरकारी योजनाओं और मूलभूत सुविधाओं से पूरी तरह वंचित हैं। पिछले 15 वर्षों से इन बेघर परिवारों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गढ़ी के पास अस्थायी ठिकाना बना रखा था, लेकिन अब उन्हें वहां से भी हटाया जा रहा है।
प्रगति यात्रा के नाम पर फिर बेघर हो रहे विस्थापित
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा 10 फरवरी को इसी इलाके में प्रस्तावित है, जो वियाहीदह गांव से मात्र 200-300 मीटर की दूरी पर होने वाली है। इस यात्रा के मद्देनजर प्रशासन अब इन बेघर ग्रामीणों को उनके अस्थायी ठिकाने से भी हटा रहा है, जिससे उनके सामने फिर से विस्थापन की विकट स्थिति खड़ी हो गई है।
अब जाएं तो जाएं कहां?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि ये गरीब और बेघर परिवार आखिर जाएं तो जाएं कहां? प्रशासन ने अब तक इनके पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं की है। न इन्हें कोई वैकल्पिक जमीन दी गई, न ही सरकारी आवास योजना का लाभ मिला। सरकारी उपेक्षा के कारण ये लोग 15 साल से अपने ही घर की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं।
प्रशासन की चुप्पी और ग्रामीणों की पीड़ा
इन पीड़ित परिवारों का कहना है कि जब सरकार प्रगति यात्रा निकाल रही है, तब क्या हमारा पुनर्वास भी इस प्रगति का हिस्सा नहीं होना चाहिए? यदि सरकार और प्रशासन ने समय रहते ध्यान दिया होता, तो आज ये परिवार इस दयनीय स्थिति में नहीं होते।
सरकार कब लेगी संज्ञान?
अब यह देखना होगा कि क्या मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा के दौरान इस गंभीर मुद्दे पर कोई संज्ञान लिया जाएगा या नहीं? क्या इन विस्थापितों को न्याय मिलेगा या वे यूं ही दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर रहेंगे?
वियाहीदह गांव के विस्थापित परिवार सरकार से बस यही सवाल पूछ रहे हैं – “हमारा कसूर क्या है?”